गुरुवार 30 अक्तूबर 2025 - 22:04
इस्लाम अक़्ल, फ़ितरत और फ़हमे वही का दीन है; इंसान अगर तअस्सुब से बाला हो तो इस्लाम स्वीकार किए बिना रह नही सकता

हौज़ा / भारत के मशहूर ख़तीब और मुबल्लिग़ हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद मोहम्मद ज़की हसन ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी से खास बातचीत में इस्लाम की पहचान, धार्मिक जागरूकता, उम्मत की एकता और आज के दौर में तबलीग की ज़िम्मेदारियों पर विस्तार से चर्चा की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, भारत के मशहूर ख़तीब और मुबल्लिग़ तथा जामेआतुल इमाम अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम (नजफी हाउस-मुंबई) के शिक्षक, टी वी चैनल “वर्ल्ड इस्लामिक नेटवर्क (WIN)” के सलाहकार और “जाफरी ऑब्जर्वर” पत्रिका के संपादक, हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद मोहम्मद ज़की हसन ने अपनी ईरान यात्रा के दौरान हौज़ा न्यूज़ एजेंसी का दौरा किया। उन्होंने खास बातचीत में इस्लाम की पहचान, धार्मिक जागरूकता, उम्मत की एकता और आज के समय में तबलीग़ की जिम्मेदारियों पर विस्तार से चर्चा की।

हौज़ा: आपने भारत के साथ-साथ विदेशों में भी दीन की तबलीग और मजलिसों के क्षेत्र में बड़ी सेवाएं दी हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए, आपके अनुसार आज मज़हब-ए-तशय्यु (शिया धर्म) को किन चुनौतियों का सामना है?

मौलाना सय्यद ज़की हसन: आज दुनिया इस इंतज़ार में है कि कोई ऐसी क़ौम सामने आए जो हमेशा हक़ और सच्चाई के रास्ते पर कायम रहे। वक्त गुजरने के साथ यह हकीकत और भी साफ हो रही है कि यही शिया क़ौम है जो हमेशा हक़ के साथ खड़ी रही है और आज भी सच्चाई का प्रतिनिधित्व कर रही है।

दुनिया अंधेरे में किसी रोशनी की तलाश कर रही है, और यह रोशनी सिर्फ शिया क़ौम में दिखाई देती है। इसकी बुनियाद वह अकीदा है जो इमाम-ए-ज़माना (अ) पर ईमान की सूरत में हमारे दिलों में ज़िंदा है।

यही अकीदा हमें दुनिया के हर कोने में एक-दूसरे से जोड़ता है। अलग-अलग सभ्यताओं, भाषाओं और संस्कृतियों के बावजूद हम सब एक ही केंद्र से जुड़े हैं, और यही एकता हमारी असली ताकत है।

इस्लाम अक़्ल, फ़ितरत और फ़हमे वही का दीन है; इंसान अगर तअस्सुब से बाला हो तो इस्लाम स्वीकार किए बिना रह नही सकता

हौज़ा: आपके विचार में मीडिया की दुनिया में उलेमा और धार्मिक छात्रो का क्या रोल होना चाहिए?

मौलाना सय्यद ज़की हसन: आज की दुनिया एक “वैश्विक गांव” बन चुकी है। खबरें अब मिनटों में नहीं, बल्कि कुछ ही सेकंड में दुनिया के हर कोने तक पहुंच जाती हैं। मीडिया अब सिर्फ खबर पहुंचाने का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज का माहौल और सोच बनाने का सबसे असरदार ज़रिया बन गया है।

इसलिए हमें चाहिए कि हम भी मीडिया के क्षेत्र में कदम बढ़ाएं और अपनी मौजूदगी को मजबूत बनाएं। सबसे ज़रूरी बात यह है कि हम अपनी भाषा को भरोसेमंद और सम्मानित बनाएं, क्योंकि मीडिया में वही भाषा असर करती है, जिस पर लोग विश्वास करते हैं। अगर हमारी ज़बान ईमान और सच्चाई की ज़बान बन जाए, तो लोग दूसरों की नहीं, बल्कि हमारी बात सुनेंगे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ने अपने पाठकों का विश्वास जीता है, क्योंकि दुनिया में खबरें तो हर जगह मिलती हैं, लेकिन भरोसेमंद खबर का असली स्रोत सिर्फ हौज़ा न्यूज़ है — और यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।

मेरा मानना है कि "हौज़ा न्यूज़ एजेंसी" ने यही भरोसा हासिल किया है। पूरी दुनिया के पाठक जानते हैं कि खबरें तो हर जगह होती हैं, लेकिन सच्ची और भरोसेमंद खबर हौज़ा न्यूज़ पर मिलती है — और यही इस संस्था की सबसे बड़ी पूंजी है।

इस्लाम अक़्ल, फ़ितरत और फ़हमे वही का दीन है; इंसान अगर तअस्सुब से बाला हो तो इस्लाम स्वीकार किए बिना रह नही सकता

हौज़ा: हाल ही में ईरान और इस्राईल के बीच बारह दिन तक चलने वाली जंग के दौरान आप हिंदुस्तान में थे। उस समय वहाँ का माहौल कैसा था, और इस जंग के बाद लोगों की सोच में क्या बदलाव आया?

मौलाना सय्यद ज़की हसन: इस जंग में इस्लामी गणराज्य ईरान को जो सफलता मिली, वह वाकई बेमिसाल थी। इसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया कि एक ख़ुदा पर भरोसा करने वाली प्रणाली कितनी मज़बूत और संगठित हो सकती है।

यह सिर्फ़ हथियारों की नहीं, बल्कि सोच और विचार की जंग थी। दुनिया ने महसूस किया कि ईरान की असली ताकत उसका “इलाही विचार” है।

भारत में आम लोगों के मन में यह धारणा थी कि इस्राईल एक ऐसा देश है जिसे कोई हरा नहीं सकता, और जिसकी जासूसी और खुफिया ताकतें दुनिया में सबसे मज़बूत हैं। लेकिन इस जंग ने साबित कर दिया कि असली जीत ताकत से नहीं, बल्कि ईमान और तौहीद से होती है।

इस जंग ने लोगों के दिलों में यह यक़ीन पैदा किया कि ईरान अकेला नहीं है, बल्कि उसके पीछे इमाम-ए-वक़्त (अ) की मदद मौजूद है। हर पल यह महसूस होता रहा कि ख़ुदा की मदद ईरान के साथ है — और यही कारण था कि दुश्मन को खुद लड़ाई रोकने की मांग करनी पड़ी।

इस्लाम अक़्ल, फ़ितरत और फ़हमे वही का दीन है; इंसान अगर तअस्सुब से बाला हो तो इस्लाम स्वीकार किए बिना रह नही सकता

हौज़ा: जब धार्मिक छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने वतन लौटते हैं, तो उनके लिए तब्लीग़ के क्षेत्र में सफलता के क्या सिद्धांत होने चाहिए?

मौलाना सय्यद ज़की हसन: धार्मिक छात्र को चाहिए कि वे हौज़ा ए इल्मिया क़ुम में अपनी तालीम के दिनों को गंभीरता से बिताएं, लेकिन साथ ही उन्हें ज़माने के हालात से भी पूरी तरह अवगत रहना चाहिए।

जब वे अपने देश लौटें, तो पहले से यह पता करें कि वहाँ के सामाजिक और वैचारिक हालात कैसे हैं, लोगों के मन में कौन से संदेह या सवाल मौजूद हैं, और उन्हें किस तरह के प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है।

मैं जब किसी नए देश में जाता हूँ, तो पहले वहाँ के हालात का अध्ययन करता हूँ, फिर वहाँ के आम सवालों और शंकाओं की एक सूची तैयार करता हूँ। इसी तैयारी की वजह से मेरी बातें वहाँ असरदार होती हैं।

हमारे छात्रों को भी यही तरीका अपनाना चाहिए — अपने उलेमा, मराज ए इकराम और सुप्रीम लीडर की हिदायत में अपने देश की ज़रूरतों को समझकर तब्लिग़ी मैदान में कदम रखना चाहिए।

हौज़ा: कई बार देखा गया है कि कुछ तालिबे-इल्म पढ़ाई पूरी किए बिना ही तब्लीग़ के लिए निकल जाते हैं और चाहते हैं कि उन्हें तुरंत सफलता मिल जाए। इस सोच को आप कैसे देखते हैं?

मौलाना सय्यद ज़की हसन: हर काम के लिए एक क्रमबद्ध और धीरे-धीरे बढ़ने वाला रास्ता होता है। कोई भी व्यक्ति पहले ही दिन सफलता की ऊंची मंज़िल पर नहीं पहुंच सकता।

तब्लीग़ के मैदान में भी शुरुआत में मुश्किलें आती हैं। बड़े-बड़े उलेमा ने भी यही रास्ता तय किया — पहले क़ुर्बानियां दीं, मेहनत और तकलीफ़ें झेलीं, तब जाकर उन्हें सफ़लता मिली।

अगर इंसान को शुरुआत में ही सारी सहूलियतें मिल जाएं, तो उसके अंदर आगे बढ़ने का जज़्बा खत्म हो जाता है। मुश्किलें ही इंसान में हिम्मत पैदा करती हैं और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।

इसलिए तुल्लाब को चाहिए कि धैर्य और मज़बूती के साथ मेहनत करते रहें, क्योंकि यही रास्ता उन्हें सफ़लता और ऊंचे मकाम तक ले जाता है।

इस्लाम अक़्ल, फ़ितरत और फ़हमे वही का दीन है; इंसान अगर तअस्सुब से बाला हो तो इस्लाम स्वीकार किए बिना रह नही सकता

हौज़ा: आख़िर में आप हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के बारे में क्या कहना चाहेंगे?

मौलाना सय्यद ज़की हसन: मैं दिल की गहराइयों से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी को मुबारकबाद देता हूँ। इस संस्था ने खुद को एक भरोसेमंद, अर्थपूर्ण और ईमानदार खबरों के स्रोत के रूप में साबित किया है।

जब पूरी दुनिया झूठी और नकारात्मक खबरों से भरी हुई है, तब हौज़ा न्यूज़ की खबरें लोगों के लिए उम्मीद और सुकून का कारण बनती हैं।

मैं दुआ करता हूँ कि यह संस्था इसी भरोसे, सच्चाई और ज़िम्मेदारी के साथ आगे बढ़ती रहे।

इस्लाम अक़्ल, फ़ितरत और फ़हमे वही का दीन है; इंसान अगर तअस्सुब से बाला हो तो इस्लाम स्वीकार किए बिना रह नही सकता

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